गुरु महिमा भजन :- संत कबीर जी
गुरु महिमा भजन :- संत कबीर जी
♫ गुरु मह
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
भरोसे थारे चाले ओ.....
दोहा : गुरु देवन के देव हो,आप बड़े जगदीश।
बेडी भवजल बिच में , गुरु तारो विस्वाविश।।
स्थाई : भरोसे थारे चाले ओ ,सतगुरु मारी नाव।
सतगुरु म्हारी नाव बापजी ,धिनगुरु म्हारी नाव।।
नहीं हे मारे कुटुम कबीलो , नहीं म्हारे परिवार।
आप बिना दूजो नहीं दिखे ,जग में पालनहार।।
भवसागर ऊंडो घणो ने ,तिरु न उतरू पार।
निगे करू तो निजर नी आवे, भवसागर रे धार ।।
सतगुरु रूपी जहाज बणा लो , इण विध उतरो पार।
सुरत जाजडी ज्ञान बांसलो ,खेवट सिरजनहार।।
कहे कबीर सुणो भाई साधो
!बह जातो मजधार।
रामानंद मिल्या गुरु पूरा ,बेडा कर दिया पार।।
सतगुरु रे ओलु आवे रे.......
स्थाई : सत्गुरूसा री ओलु आवे रे ,म्हारो रोम रोम गरणावे
रे।
रोम रोम गरणावे रे म्हारो ,हिवड़ो हिलोरा खावे रे।।
रात दिवस म्हाने नींद नी आवे, अन पानी म्हने कछु नहीं
भावे।
म्हारे नैना नीर भर आवे
रे , म्हारा गुरु बिन रयो नहीं
जावे रे।।
पल पल छिन छिन याद सतावे , एडा एडा बादल घटा चढ़आवे।
म्हारी सुरता शोर मचावे
रे , म्हारो बालक जीव घबरावे
रे।।
किस्मत री काई-काई गावे
रे ,म्हारा गुरूसा फिर नहीं
आवे रे।।
जहाज पड़ी दरियाव बीच में ,अध बिच गोता खावे रे।
सतगुरु खेवट बण आवे रे ,म्हारी नैया पार लगावे
रे।।
गौड़ भागीरथ भजन बणावे ,कुशल रतन थारो गुण गावे।
ओ तो भजन मोइनुदीन गावे
रे ,गुरु चरणा में शीश निवावे
रे।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
एकणवार आईजो सतगुरु.......
दोहा : संत हमारे सिरधणी ,में संतन की देह।
रोम-रोम में रम रया ,प्रभु ज्यू बादल में
मेह।।
स्थाई : एकणवार आईजो, सतगुरु वारम्वार आइजो।
धिनगुरूसा म्हारे देश में
ओ जी।।
सतगुरु म्हारा फुलड़ा रे ,धिन गुरु म्हारा फुलड़ा।
कोई फुलड़ा मोयली वासना ओ
जी।।
सतगुरु म्हारी गंगा रे , धिन गुरु म्हारी गंगा।
कोई गंगा मोयली गोमती ओ
जी।।
सतगुरु म्हारी माला रे ,दाता म्हारी माला।
कोई माला मोयली मुंगिया ओ
जी।।
सतगुरु म्हारा देवल रे ,धिन गुरु म्हारा देवल।
कोई देवल मोयला देवता ओ
जी।।
सतगुरु म्हारा बादल रे ,धिन गुरु म्हारा बादल।
कोई बादल मोयली बिजली ओ
जी।।
सतगुरु रो परताप ओ, म्हारे धिन गुरु रो परताप।
कोई जीवणजोशी बोलिया ओ
जी।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
म्हारा सतगुरु भया रंगरेज ,चूनर........
स्थाई : म्हारा सतगुरु भया रंगरेज ,चूनर म्हारी रंग डारी।।
भाव की पूंजी नेका जल में ,ज्ञान रंग दिया घोल।
शीतल चुनरी ओढ़ाय के रे,खूब करि जकजोल , चूनर म्हारी रंग डारी।।
सत्गुरूसा ने चूनर रंग दी ,सतगुरु चतुर सुजान।
सब कुछ गुरु पर वार दूं
रे ,तन मन धन और प्राण,चूनर म्हारी रंग डारी।।
स्याह रंग छुड़ाय के दाता ,दिया मजीठी रंग।
धोए से उतरे नहीं रे ,दिन - दिन होत सुरंग,चूनर म्हारी रंग डारी।।
धर्मिदास कहे चूनर रंग दी, मुझ पर कृपा दयाल।
शीतल चूनरी ओढ़ाय के दाता, कर दिया प्रेम निहाल,चूनर म्हारी रंग डारी।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
भाग भला जिन घर संत
पधारे......
दोहा : संत समागम हरी कथा ,तुलसी दुर्लभ दोय।
सूत दारा अरु लक्ष्मी ,पापी गृह भी होय।।
स्थाई : भाग भला रे जिण घर संत
पधारे।
कर किरपा भव सागर तारे।।
आया संतो ने आदर दीजो,चरण खोल चरणामृत पीजो।।
एड़ा संत हे पर उपकारी,शरण आया ने लेवे उबारी।।
संत सायब कछु अंतर नाही,सायब रा घर संता रे
माहि।।
संता रे मुख सुं सुनिये
वाणी, सुणतां ही छूटे चौरासी री
खाणी।।
कहे कबीर संत भला ही
पधारे ,जनम जनम रा कारज सारे।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
\
वारि ओ गुरुदेव आप ने
बलिहारी.......
दोहा : गुरु गोविन्द दोनों खड़े,काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने,गोविन्द दियो मिलाय।।
स्थाई : वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी।
भव जल डूबत तारियो,म्हारा सतगुरु लियो रे
उबारी।
गुरासा ने बलिहारी ,हां रे गुरासा ने
बलिहारी।।
गुरु नहीं होता जुगत में ,कुन करतो म्हारी स्याय।
भोगता दुःख भारी ,हां रे भोगता दुःख भारी।।
असंख जुगा रो सुतो म्हारो
हंसलो, सतगुरु दियो रे जगाय।
शबद री सिसकारी, हां रे शबद री सिसकारी।।
गुरु बिन अँधा जाणिये,हे नहीं आतम ज्ञान।
जगत पच-पच हारी ,हां रे जगत पच-पच हारी।।
जम से झगड़ा जीतकर इण, सुख रे सागर माय।
भयो आनंद भारी, हां रे भयो आनंद भारी।।
फूलगिरि री विनती रे, दुर्बल करे हे पुकार।
अरज अब सुन मारी, हां रे अरज अब सुन मारी।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
उम्मेदी गेरी लाग रही..........
दोहा : संत मुक्ति रा पोलिया,वां संग कीजे प्यार।
कूंची उनके साथ हे ,खोले मोक्ष द्वार।
खोले मोक्ष द्वार,नारगी बायर काढ़े।
दे आपणा उपदेश,ज्ञान की जहाजां चाढ़े।
स्थाई : म्हाने सत्गुरूसा मिलवा
रो गेरो कोड,उम्मेदी गेरी लाग रही।
म्हाने सत्गुरूसा मिलवा
रो गेरो कोड,उम्मेदी गेरी लाग रही।।
मोय उम्मेदी ऐसी लागी ,निर्धन के धन होय।
बांझ नार पुत्र बिन तरसे,मै रे हो गुरु सा तोय।।
सतगुरु तो दरियाव है,मै गलिया को नीर।
बहती बून्द समंद में रळगी ,कंचन भयो रे शरीर।।
जहाज पड़ी दरियाव में,अधबिच गोता खाय।
सतगुरु तो खेवट मिल जावे,कर दे पलक में पार।।
गुरु गहरा गुरु भाव रा ,गुरु देवा रा देव्।
रामानंद रा भणे कबीरा ,पाया हे केवल देव।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
बोले मेरा सतगुरु अमृतवाणी.........
दोहा : सतगुरु ऐसा कीजिए, जैसे लोटा डोर।
गला फ़सावे आपणा, पावे नीर झकोर।।
स्थाई : बोले मेरा सतगुरु
अमृतवाणी।
दूधा रा दूध पानी रा
पाणी।।
रात नहीं निदरा चैन नहीं
मन में।
लागी म्हारे चोट शबद री
तन में।।
सतगुरु पुष्प ने में हुँ
भंवरा।
हरी ने भजे ज्यारो काँही
लेवे जमड़ा।।
सतगुरु वैध खलक सब रोगी।
हरी ने भजे ज्यारो काया
निरोगी।।
कहत कबीर सुनो भाई संतो।
घट हिरदे में बिठाया
संतो।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
प्रीत गुरां री भली........
दोहा : रामचन्द्र से कोन बड़े, वे भी गुरुगम कीन।
तीन लोक के वे घणी, गुरु आगे आधिन।।
स्थाई : प्रीत गुरा री भली रे
रावलिया जोगी।
प्रीत गुरा री भली।।
लवना रे लागी ज्यां री भरमना भागी रे।
सूरत शबद में मिली रे
रावलिया जोगी,
प्रीत गुरा री भली।।
चेतन होय नर सुमिरण करणा
रे।
तार सु तार मिली रे रावलिया जोगी,
प्रीत गुरा री भली।।
अड़ा रे उड़द बिच मण्डी रे बजाराम रे।
सोहंग ज्योति जगी रे रे रावलिया जोगी,
प्रीत गुरा री भली।।
चंचलनाथ शरणे लुमनाथ बोले रे।
संगत संतो री भली रे रे रावलिया जोगी,
प्रीत गुरा री भली।।
प्रीत गुरा री भली रे रावलिया जोगी।
प्रीत गुरा री भली।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
सत्गुरूसा म्हणे प्रेम
प्यालो.........
दोहा : सतगुरु दिवो नाम रो, तो क्या जाने संसार।
घिरत सिंचावो प्रेम रो, तो उतरो भवजल पार।।
स्थाई : ओ म्हाने कर मनवार पिलायो
रे,
दयालु म्हाने प्रेम
प्यालो पायो रे,
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
असंख जुगां री म्हारी
नींद उड़ाई रे।
म्हाने सुतोडा ने आय
जगायो रे,
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
कुटुम कबीलो म्हारो सब जग
झूठो रे।
म्हाने सत्गुरूसा सही
समजायो रे,
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
आऊं नहीं जाऊं जग में,मरू नहीं जन्मूँ रे।
म्हाने अमरपुर रो
मार्गियों बतायो रे,
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
अड़सठ तीरथ म्हारे गुरूसा
रे शरणो में।
म्हें तो गीता जी रो
ज्ञान गंगा नहायो रे,
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
देवनाथ गुरु पूरा मिलिया
रे,
ओ तो राजा रे मान जश गायो
रे।
धिनगुरुसा म्हाने प्रेम प्यालो पायो
रे।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजाल पावे.........
दोहा : तरवर सरवर संतजन, चौथा बरसे मेह।
परमारथ रे कारणे, ऐ चारों धारी देह।।
स्थाई : गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे।
कूपां रा नीर किण विध
सूखे,
सीर सायरियां सूं आवे।।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
कर्मा री जाजा दो
प्रकारां,शुभ अशुभ कहावे।
अशुभ करम ने मार हटावे, राम नाम चित लावे।।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
सतगुरु म्हारा चनण सरूपी, फूल वासना लेवे।
लिपटयोडा भुजंग मगन होई
जावे,
कदेई छोड़ नहीं जावे।।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
सतगुरु म्हारा भंवर सरूपी,कीट पकड़ ने लावे।
दे घरघाटो शब्द सुनावे, कर भंवरा ने उड़ावे।।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
दूध माहि घिरथ महेंदी में
लाली, ज्ञान गुरासा सु आवे।
कहत कबीर सुणो भाई साधो, भाग पुरबला पावे।।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
गुरांसा बिना, कौण प्रेमजल पावे जी हो
ओ।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
आवणो पड़ेला
सतगुरु........
दोहा : गुरु गोविन्द दोनों खड़े,काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने,गोविन्द दियो मिलाय।।
स्थाई : आवणो पड़ेला सतगुरु, आवणो पड़ेला।
आज री सतसंग में थाने, आवणो पड़ेला।।
पहला जुगा में राजा प्रहलाद आया।
पांच करोड़ तपसी तारणा
पड़ेला।।
आज रा जागरण में थाने, आवणो पड़ेला।।
दूजा जुगा में राजा हरिशचंद्र आया।
सात करोड़ तपसी तारणा
पड़ेला।।
आज री सतसंग में थाने, आवणो पड़ेला।।
तीजा रे जुगा में राजा जेठल आया।
नव रे करोड़ तपसी तारणा पड़ेला।।
आज रा जागरण में थाने, आवणो पड़ेला।।
चौथा जुगा में राजा
बलीचंद आया।
बारह करोड़ तपसी तारणा पड़ेला।।
आज री सतसंग में थाने, आवणो पड़ेला।।
चार जुगां रा मंगल रुपा
दे जी गावे।
थाली माहि बाग़ लगावणो
पड़ेला।।
आज रा जागरण में थाने, आवणो पड़ेला।।
आवणो पड़ेला सतगुरु, आवणो पड़ेला।
आज री सतसंग में थाने, आवणो पड़ेला।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
|| भजन संत मिले उपदेशी ||
अरे सतगुरु आया ने रिद्धि
सिद्धि लाया
निर्भय नाम सुनाया जी || २
संत मिले उपदेशी आतम री
बाता कैसी जी -२
संत मिले उपदेशी हो जी
सोना पीतल रो एक रंग
पीतल ने सोनो कुन कैसी || २
संत मिले उपदेशी आतम री
बाता कैसी जी -२
संत मिले उपदेशी हो जी
काग कोयल रो एक रंग
कागा ने कोयल कुन कैसी || २
संत मिले उपदेशी आतम री
बाता कैसी जी -२
संत मिले उपदेशी हो जी
हँस बुगला रो एक रंग
बुगला ने हँस कुन कैसी || २
संत मिले उपदेशी आतम री
बाता कैसी जी -२
संत मिले उपदेशी हो जी
खीर खांड रा इमरत भोजन -२
संत मलोड़ा लेसी रे
खीर खांड रा इमरत भोजन
संत मलोड़ा लेसी रे
संत मिले उपदेशी आतम री
बाता कैसी जी -२
संत मिले उपदेशी हो जी
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
सतगुरु आविया जी म्हारे.........
दोहा : सतगुरु म्हारा बाणिया, बिणज करे व्यापार।
बिन डांडी बिन ताकड़ी, गुरु तोल दिया संसार।।
स्थाई : सतगुरु आविया जी म्हारे, धिन घड़ी धिन भाग।
दयालु घर आविया जी, म्हारे धिन घड़ी धिन भाग।।
धिन घड़ी धिन भाग म्हारे, धिन घड़ी धिन भाग।।
उँची पाल शबद की रे संतो, नीचो जमना नीर।
उँची चढ़ने जोवियो रे चहुँ
दिश दिसे रे कबीर।।
कांई रे बुहारू मै तो
आंगणो हो संतो, काय री घालु गार।
चनण बुहारू आंगणो रे, केसर घालु गार।।
आंगणिये बवाडु डोडा एलची
रे, सुगनो री नागरवेल।
थाल भरुँ गज मोतियाँ रे, करू गुरूजी री सेव।।
जुगन - जुगन में फेरिया
जी, म्हाने सतगुरु मिल्या
नजदीक।
बाई अमना री विनती रे, सतगुरु मिलिया कबीर।।
सतगुरु आविया जी म्हारे, धिन घड़ी धिन भाग।
दयालु घर आविया जी, म्हारे धिन घड़ी धिन भाग।।
धिन घड़ी धिन भाग म्हारे, धिन घड़ी धिन भाग।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
में अरज करूँ गुरु थाने.........
दोहा : संत बड़े परमार्थी, शीतल ज्यां रा अंग।
तपत बुझावें ओरो की, दे दे भगती रंग।।
स्थाई : मै अरज करूँ गुरु थाने, चरणां में राखजो म्हाने।
हेलो प्रकट करुं की छाने, म्हारी लाज शरम सब थाने।।
गुरु मात पिता सुत भ्राता, सब स्वारथ का है नाता।
एक तारण तिरण गुरु दाता, ज्यां रा चार वेद जस
गाता।।
हो मै अरज करूँ गुरु थाने, चरणां में राखजो म्हाने।
भवसागर भरियो भारो, म्हाने सूझत नहीं रे
किनारो।
गुरुघट में दया विचारो, म्हें डूब रयो मझधारो।।
हो मै अरज करूँ गुरु थाने, चरणां में राखजो म्हाने।
कोई संत लियो अवतारों, जीवो ने पार उतारो।
म्हाने आयो भरोसो भारो, नहीं छोड़ू शरणो थारो।।
हो मै अरज करूँ गुरु थाने, चरणां में राखजो म्हाने।
गुरु तन मन धन सब थारो, चाहे शीश काटलो म्हारो।
जन दरियाराव पुकारो, चरणा रो चाकर थारो।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
आज रो दिवस मै तो जाउँ.........
दोहा : सतगुरु बिन सोझी नहीं, सोझी सब घट माँय।
रजब मकी रा खेत में, चिड़ियाँ ने ग़म नाँय।।
सात दीप नवखण्ड में, सतगुरु डारी डोर।
डोर पकड़ आवे नहीं तो, कोई सतगुरु रा जोर।।
सतगुरु ऐसा कीजिए, जैसे लोटा डोर।
गला फ़सावे आपणा, पावे नीर झकोर।।
स्थाई : आज रो दिवस में तो जाऊ
बलिहारी।
मेरे घर आए श्री रामजी रा
प्यारा।।
करुं रे डंडोवत चरण
पखारूँ।
तन मन धन निछरावल वारुं।।
शुद्ध भये अंगना पवित्र
हुए भवना।
हरिजन बैठ हरि रा गुण
गावणा।।
कथा करे और ज्ञान विचारे।
आप तिरे औरन को तारे।।
कहे रविदास कोई मिले हरी
रा बन्दा।
जनम मरण रा काटे जी
फन्दा।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
गुरुदेव कहे सुण चेला.........
दोहा : सतगुरु म्हारा बाणिया, बिणज करे व्यापार।
बिन डांडी बिन ताकड़ी, गुरु तोल दिया संसार।।
स्थाई : गुरुदेव कहे सुण चेला, थारो जनम सफल जद वेला।
आद पुरुष ने ध्यावो, संतो ने शीश नामावो।
थारा कियोडा पाप धुलेला, थारो जनम सफल जद वेला।।
सत री संगत में जाणा, भगती में जीव लगाणा।
थारा मन ने मार ले पेला, थारो जनम सफल जद वेला।।
पर धन धूड़ कर जाणो, पर तिरिया मात कर मानो।
थूं एड़ी-एड़ी रेहणी में रेला, थारो जनम सफल जद वेला।।
निन्दिया बुराई मत करजो, अरे ऊजड़ जावे वां ने
वरजो।
राजाराम जी दे रया हेला, थे भरो भजन रा थेला।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... .........
दलाली हीरा लालन की.........
दोहा : सतगुरु आवत देखिया, ज्यारे काँधे लाल बंदूक।
गोली दागी हरी नाम री, भाग गया जमदूत।।
स्थाई : म्हारा सतगुरु दीवी रे
बताय, दलाली हीरा लालन की।।
लाली लाली सब कहे रे, सबके पल्ले लाल।
गाँठ खोल परखी नहीं रे, इण विध भयो रे कंगाल।।
लाल पड़ी मैदान में रे, खल्काउ लांग्यो जाय।
नुगरे ठोकर मार दीनी, सुगरे तो लीवी रे उठाय।।
इधर से अंधा आविया, उधर से अंधा जाय।
आंधा से आंधा मिले रे, मारग कुण तो बताय।।
माखी बैठी शहद पर रे, पंखुडिया लिपटाय।
उड़ने रा सासा पड़े रे, लालच बुरी रे बलाय।।
लाली लाली सब कहे रे, लाली लखी न जाय।
लाली लखी रे दास कबीर, आवा रे गमन मिट जाय।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
हंस हीरा रो मोल करे .........
दोहा : गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ
है, घडि-घड़ि काढ़े खोट।
भीतर हाथ पसार के, बाहर मारे चोट।।
स्थाई : गुरु म्हारा पारस
पवन सूं ही झीना,
शायर वाली दाता लहरा करे।
हंसला री गुरुगम हंसलो ही
जीणे,
हंस हीरा रा मोल करे हो
जी।।
गुरु म्हारा पारस पत्थर
ने पूजे,
पारस संग ले पत्थर तिरे।
पत्थर तिरेओ वाने
प्रेमजाल पावे,
पारस पेले पार करे, हो जी।।
गुरु म्हारा पारस बलध ने
हाँके,
सत शब्दो वाली हाँक करे।
ज्ञान की डोरी ने प्रेम
अगाडी,
हलकारे ज्यूं शाम ढले, हो जी।।
गुरु म्हारा पारस हेत
वाला हीरा,
हंस मिल्यां दाता हेत करे।
हंसा रे जोड़े बैठे कागला,
कागा ने दाता हंस करे, हो जी।।
बादली ज्यूं बरसे ने
बिजली ज्यूं चमके,
झर-झर झरना नीर बहे।
नीर झरे वठे निपजण लागा,
पीया प्याला मगन फिरे हो
जी।।
गुरु म्हारा शायर समद जल
सागर,
महासागर में जहाज तिरे।
नुगरा वे तो गलस्यां ही खावे,
समइयां पहला पार करे, ओ जी।।
निर्गुनाथ भोलानाथ जी
जाण्यां,
दुर्बल ऊपर दया करे।
भवानीनाथ यूं जश गावे,
आप गुरांसा ने याद करे, हो जी।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे.........
दोहा : तीरथ गये ते एक फल, संत मिले फल चार।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।।
स्थाई : प्राण पड़े म्हारी काया
धूजे, नैणा में नींद नहीं आवे
रे।
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे।।
खान पान म्हने फीका लागे, जिवडो म्हारो कुम्हलावे।
कद सतगुरुजी दरश दिखावे, मन री प्यास बुझावे रे,
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे।।
तन मन धन करूँ रे निछावर, फुलड़ा री सेज बिचावूं।
भाव प्रीत रा तकिया
लगावूं, सतगुरु चवर ढुलावू रे,
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे।।
सतगुरु आवे ज्यां रा
दर्शण पावुँ, मोतियाँ रा चौक पुरावूँ।
ले गंगाजल चरण पखारूँ, हरख-हरख गुण गाऊँ रे,
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे।।
जनम-मरण रा बंधन तोड़े, सतगुरु आंगण आवे।
दे चिंगारी अमर किया
म्हाने, नाथ गोरख जस गावे रे,
म्हारा मन, सतगुरु दरश दिखावे।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
भली करी गुरुदाता.........
दोहा : प्रथम गुरु महाराज को तो, चरण निवावूँ शीश।
हाथ जोड़ विनती करूँ, गुरु ज्ञान करो बख्शीस।।
स्थाई : भली करी गुरुदाता, जिव राख्यो चौरासी में
जाता।
भूलूं नहीं लाखो बाता, म्हारे गुरु वचनो रा
नाता।।
करम गली में आयो, करमां में काठो कलायो।
गुरु बचा लियो दोनूं
हाथां, म्हारे गुरु वचनो रा
नाता।।
पगां तणो पांगलियो, म्हारा सतगुरु हेलो
सांभळियो।
नहीं तो रन वन में रह
जाता, म्हारे गुरु वचनो रा
नाता।।
आँख्यां छतो अंधारो, गुरु भूण्डो हाल हमारो।
सत्संग रा खेल बताया, म्हारे गुरु वचनो रा नाता।।
मोह माया री नदी है भारी, जिण में बह गयो कई वारि।
गुरु बचा लियो बह जाता, म्हारे गुरु वचनो रा
नाता।।
सतगुरु सेण बताई, साधु सिमरथ राम सुधि पाई।
गुरु चरणों में राता माता, म्हारे गुरु वचनो रा
नाता।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
सतगुरु सायब जी ओ.........
सतगुरु सायब जी ओ, म्हारी वीनती सुण लो।
वीनती सुण लो म्हारी, अर्जी तो सुण लो।
सतगुरु सायब जी ओ, म्हारी वीनती सुण लो।।
म्हारे तो शत्रु घणा जी, भगती करण दे नाँय।
काम क्रोध मद डाकन्यां ए, लागी म्हारे लार।।
तृष्णा है बल डाकिणी, आ लागी म्हारे लार।
अजहु तो ए धापी नहीं, खायो जुग संसार।।
शबद स्पर्श और रूप गंध जी, इणमें है वो पाँच।
अपने अपने स्वाद को जी, जग में भूल्यो जाय।।
मन मरकट माने नहीं ओ, कितना करुं रे उपाय।
बहुत भाँत परमोदियो जी, म्हणे नचावे नाच।।
भवसागर का चक्कर में जी, आन पड़ी है नाव।
करुणा सिन्धु कबीर सा ने, धरमी करे पुकार।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
गुरुदेव दया कर के।
गुरुदेव दया कर के, मुझको अपना लेना।
मै शरण पड़ा तेरी, चरणों में जगह देना।।
करूणानिधि नाम तेरा, करुणा दिखलाओ तुम।
सोए हुए भागो को, हे नाथ जगाओ तुम।
मेरी नाव भंवर डूबे, इसे पार लगा देना।।
तुम सुख के सागर हो, निर्धन के सहारे हो।
इस तन में समाये हो, मुझे प्राणो से प्यारे
हो।
नित माला जपूं तेरी, दिल से न भुला देना।।
पापी या कपटी हूँ, जैसा भी हूँ तेरा हूँ।
घर-बार छोड़कर में, जीवन से अकेला हूँ।
में दुःख का मारा हूँ, मेरे दुखड़े मिटा देना।।
मै सबका सेवक हूँ, तेरे चरणों का चेला हूँ।
हे नाथ भुला ना मुझे, इस जग में अकेला हूँ।
तेरे दर का भिखारी हूँ, मेरे दोष मिटा देना।।
गुरुदेव दया कर के, मुझको अपना लेना।
मै शरण पड़ा तेरी, चरणों में जगह देना।।
......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ......... ........
हद में तो दाता खेल रचायो.........
दोहा : हद लखे सो ओलिया, बेहद लखे सो पीर।
हद बेहद दोनों लखे, ज्यां रो नाम फ़क़ीर।।
स्थाई : हद में तो दाता खेल रचायो, बेहद माँहिने आप फिर।
अधर धरा पर आसन मांड्यो, धरा गगन बिच मौज करे हो
जी।।
हंसा होय हंसा संग बैठे, कागां रे संग नहीं ओ
फिरे।
नुगरा नर तो फिर भटकता, खोजी वे तो खोज करे ओ
जी।।
अमर जड़ी गुरुदाता से पाई, नैणां सूं म्हारे नीर
पड़े।
उण बूटी रा परस ना पाया, उण सूं करोडो दूर फिरे हो
जी।।
सिमरथ गुरु री शरण में पड़िया, ओघट घाटा गैलां फिरे।
गुरुज्ञान पारस जिणे पियो
वे, विण जीवा ने पार करे हो
जी।।
रण चले शूरां रे खाटे, कायर वे तो देख डरे।
कहे भैरव गुरु दयाल रे
शरणे, करोड़ जनम रा पाप ठाले हो
जी।।
Comments