जीरो बजट प्राकृतिक खेती के (चार पहिये एवं कीट नियंत्रक विधियां)

  

Subhash Palekar Natural Farming Concept

जीरो बजट प्राकृतिक खेती के (चार पहिये एवं कीट नियंत्रक विधियां)

 

                                                          बीजामृत

क्यों जरुरी हैं ?

बीजामृत बीज संस्कार के लिए बनाया जाता है बीजामृत के संस्कार से बीज जल्दी  और ज्यादा मात्रा में उगकर आते है जड़े तेज गति से बढती हैं और भूमि से पेड़ो पर  जो बीमारियों का प्रादुभाव होता हे, बह होता नहीं हे, पोधे अच्छी  तरह से बढते हे बीजामृत में गोबर फफूंदनाशक और गोमूत्र जंतूरोधक रूप में लेने से बिभिन्न बीमारियों का नियत्रण होता है|

       आवश्यक सामग्री -

        20 लीटर पानी

        5 किलोग्राम देशी गाय का ताजा गोबर                                 

        5 लीटर देशी गाय का गोमूत्र |

        50 ग्राम चूना

       जीवयुक्त मिट्टी मुट्ठी भर

बीजामृत बनाने की बिधि –

इन सभी को 24 घन्टे एक साथ पानी में डालकर रखे, दिन में दो बार सुबह शाम लकड़ी से घोले | और घडी की सुई की दिशा में धीरे –धीरे मिलाए |

       बीजामृत का प्रयोग-

बाद में 100 किलोग्राम बीज आँगन में फेलाकर बीजामृत का छिडकाव करे हल्के हाथो से मिलाये , और धूपके पास वाली छावं में सुखाए और बाद मेंबीज बोये |अगर आप केले के कंद या गन्ने के टुकड़े लगाना चाहते हो तो लगाने के पहले उन्हें बीजामृत में डुबाये और बाद में तुरंत लगाए | अगर आप धान या मिर्च, प्याज़ ,टमाटर बेंगन , गोभी ,आदि कोई भी रोप लगाना चाहते हो तो उनकी जड़े बीजामृत में डुबाये और फिर लगाए  |अनाजीय बीजो को बीजामृत से छिडकाव कर बुवाई करना है| इससे 90 % के ऊपर अंकुरण मिलता है|

 

जीवामृत

क्यों जरुरी हैं ?

जीवामृत पेंड पोधो कीखाद नहीं है व इसमे वयाप्त अन्नत कोटि सूछम जीवव फसलो पर प्रयोगकरने पर फसलो के संवर्धन , गुणवत्ता व पोस्टकता के लिए खुराक तेयार करते है|

आवश्यक सामग्री -                                        

Ø   200 लीटर पानी                                                                            

Ø   10 किलोग्राम देशी गाय का ताजा गोबर

Ø   10 लीटर देशी  गाय का गोमुत्र

Ø    1-2 किलोग्राम दलहन आटा

Ø    1-2  किलोग्राम गुड

Ø    जीवयुक्त मिट्टी मुट्ठी भर

जीवामृत बनाने की बिधि-

Ø  उपरोक्त सामग्री का मिश्रण दो से तीन दिन छावं अथवा हल्की धूप में सड़ने (किण्वन क्रिया ) के लिय रखना है| दिन में दो सुबहशाम लकड़ीसे घडी के कांटे जिस दिशामें घुमते हैं)घुमाना हैं उस दिशा में बाये से दाये ओर चक्राकार दो मिनिट के लिय घोलना है | जीवामृत को गनीबेग (बोरा) से ढक देना है| जीवामृत सड़ने (किण्वन क्रिया)के दोरान अमोनिया, कार्वनमोनोआक्साइड, कार्वनडाईआक्साइड, मीथेन जेसे हानिकारक वायु निर्माण होते हैं जों जूट के बोरे के छेदों से वातावरण में निकल जाते है | जीवामृत बनने के बाद उसे सात दिन तक उपयोग में लाना है | सात दिन के बाद बचा हुआ जीवामृत भूम पर छिडकाव कर देना हे | सात दिन के बाद उसे पानी के साथ उपयोग में नहीं लाना हैं | प्रति एकड़ 200 लीटर जीवामृत का महिने में कम से कम 3-4 बार फसलों पर छिडकाव करे |

 

 

घनजीवामृत

क्यों जरुरी हैं ?

घनजीवामृत पेंड पोधो की सुखी खाद है यह इसमे मोजूद अन्नत सूक्ष्म कोटि जीव फसलो पर प्रयोग करने पर फसलो की गुणवत्ता व पोषकता बढाई जाती है |

आवश्यक सामग्री -

Ø   100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर

Ø   2 लीटर देशी गाय का गोमूत्र

Ø   1 किलोग्राम गुड

Ø   2 किलोग्राम दलहन आटा

Ø   जीवयुक्त मिट्टी मुट्ठी भर

बनाने की विधि –

सर्वप्रथम 100 किलोग्राम गाय के  गोबर को किसी पक्के फ़र्स व पालीथिन पर फेलाये फिर इसके बाद एक किलोग्राम गुड व एक किलोग्राम चने का आटा डालें इसके बाद  जीवयुक्त मिट्टी मुट्ठी भर डालकर तथा दो लीटर गोमूत्र सभी सामग्री को फावड़ा से मिलाये फिर 48 घन्टे छायादार स्थान पर एकत्रित कर या थापिया बनाकर जूट के बोरे से ढक दे 48 घन्टे बाद उसको छाया पर सुखाकर चूरण बनाकर भण्डारण करे| किसी भी फसल के बुबाई के समय प्रति एकड़ 100 किलो छाना हुआ गोबर खाद और 100 किलो सूखा हुआ घनजीवामृत मिलाकर बीज के साथ बीज के सामने बोइये | घनजीवामृत एक वर्ष तक उपयोग कर सकते है |

दशपर्णी अर्क

क्यों जरुरी हैं ?

सभी तरह के रस चूसक कीट और सभी इल्लियों के नियंत्रण हेतु

आवश्यक सामग्री

  • 5 किलोग्राम नीम के पत्ते 2 किलोग्राम पत्ते प्रति कड़वा पौधा (आकडा, धतुरा, पाडलसी, खीप, करंज, गडतुम्बा, कनेर, देशी बबूल, पपीता, अरंडी आदि व समकक्ष कोई 10 प्रकार के पोधे के पत्ते) 
  • 200  लीटर पानी 1 किलोग्राम देशी गाय का गोबर    10  लीटर देशी गाय का गोमूत्र
  • 200  ग्राम हल्दी पाउडर  500  ग्राम हरी मिची चटनी  500  ग्राम लहसून की चटनी

नीम सहित प्रत्येक दस प्रकार के कड़वे पौधे के पत्तो को बारीकी से कूटकर (चटनी की तरह) अपघटन (गलने तक) के लिए 40-45 दिनों तक रखे | मिश्रण को सुबह शाम -2 बार घडी की दिशा में घुमाना है |

 

 

 

 

सावधानियां

बारिस के पानी व सूरज की रोशनी से बचाना है i| घोल को छाव में ठंडे व सूखे स्थान में रखना है |

उपयोग का तरीका

दशपर्णी अर्क  को 6 महीने के लिए उपयोग में  लाया जा सकता है | दशपर्णी अर्क का उपयोग बीमारी की संभावना से पूर्व तथा रस चूसने वाले कीट और पत्ते खाने वाले इल्ली का अटेक होने पर 200 लीटर पानी में 5-6 लीटर दसपर्णी अर्क मिलाकर प्रति एकड़ क्षेत्र में छिडकाव करें ताकि नियंत्रण किया जा सके |

नीमास्त्र

क्यों जरुरी हैं ?

रस चूसने बाले कीट के नियंत्रण हेतु|

आवश्यक सामग्री -

       5 किलोग्राम नीम के पत्ते की चटनी

        100 लीटर पानी

        5 लीटर देशी गाय का गोमूत्र

        1 किलोग्राम देशी गाय का गोबर डाले |

नीमास्त्र का प्रयोग व सावधानियां

इस घोल को घडी की सुईयो की दिशा में अच्छे से धीरे- धीरे मिलाकर बोरी से ढक दें और 48 घन्टे तक छाया में  रखे |उस पर धूप या बारिश का पानी नहीं पड़ना चाहिए | दिन में दो बार सुबह शाम 1 मिनट तक घडी की सुईयो की दिशा में घोलें | 48 घन्टे के बाद उसको कपडे से छानकर भण्डारण करें |6 महिने तक उपयोग कर सकते हैं| इसमे पानी नहीं मिलाएँ , सीधा प्रयोग करें|

                                    अग्नियास्त्र

क्यों जरुरी हैं ?

तना कीटक फलो में आने बाली सुंडी इल्लियों , फलियों में रहने बाली सुंडी इल्लियों, और सभी बड़ी सुंडी इल्लियों के नियंत्रण हेतु|

आवश्यक सामग्री -

       20 लीटर देशी गाय का गोमूत्र

        1 किलोग्राम तम्बाकू

        500 ग्राम लहसून

        500 ग्राम हरी मिर्ची

        5 किलो नीम की पत्ती कूट कर डाले |

अग्निअस्त्र का प्रयोग कैसे करें-

 लकड़ी से उस गोमूत्र के घोल को घोले, बाद में उस बर्तन पर ढकन रखकर उसे उबाले | चार उबाली लगातार होने के बाद उस बर्तन नीचे रखे ,48 उसे वैसा ही ठंडा होने के लिय रखिये , बाद में कपडे से छान लीजिये और भरकर रखे , उसे मिट्टी के मटके में या बाटल में भरकर ठंडी जगह भण्डारण करे ,  100 लीटर पानी में 2.5 से लेकर 3 लीटर मिलाकर एक एकड़ फसल पर छिड़काव करे |यह अग्निअस्त्र 3 महिने उपयोग में ला सकते है |

थ्रिप्स केसे करे ?

        प्रति एकड़ 200 लीटर पानी +3 लीटर ब्रह्मास्त्र + 3 लीटर अग्निअस्त्र मिलाकर फसल पर छिड़काव करे |

 

 

ब्रह्मास्त्र

 

क्यों जरुरी हैं ?

अन्य कीटक और बड़ी सुंडी इल्लियों के नियंत्रण हेतु|

आवश्यक सामग्री -

       10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र

        3 किलोग्राम नीम की पत्ती

        2 किलोग्राम सीताफल की पत्ती

        2 किलोग्राम पपीता की पत्ती

        2 किलोग्राम अनार की पत्ती

        2 किलोग्राम अमरुद की पत्ती

        2 किलोग्राम धतूरा की पत्ती

ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कैसे करें-

अब इन से कोई भी पांच बनस्पति का गूदा गोमूत्र में घोलिये | ऊपर ढकन रखकर उसे उबालिये | चार उबाली लगातार होने के बाद उस बर्तन को नीचे रखिये | 48 घन्टे उसे वैसे ही ठंडा होने के लिए रखिये | बाद में कपडे से छान लीजिये और भरकर रखिये | यह हो गया ब्रहमास्त्र तेयार| उसे मिट्टी के मटके में या बड़े बाटल में भरकर ठंडी जगह भंडारण करें | 100 लीटर पानी में 2.5 से लेकर 3 लीटर मिलाकर एक एकड़ फसल पर छिड़काव करे | यह ब्रहमास्त्र आप 6 महिने रख सकते है |

                      सप्तधन्यांकुर अर्क ( सक्ती वर्धक दवा)

आवश्यक सामग्री –

एक छोटी कटोरी में 100 ग्राम तिल (प्राथमिकता काले तिल को) लेकर उसे उपयुक्त पानी में डालकर डुबाये और घर में रख दें |Iii अगले दिन सुबह एक थोड़ी बड़ी कटोरी में 100 ग्राम मूंग के दाने, 100 ग्राम उड़द के दाने, 100 ग्राम लोबिया के दाने, 100 ग्राम मोठ / मसूर के दाने, 100 ग्राम गेहू के दाने, 100 ग्राम देशी चना के दाने डाल कर मिलाय एवं उपयुक्त मात्रा में पानी डालकर भिगोएँ एवं घर में रखें ii|  अगले दिन इन सभी को बाहर निकाल कर कपडे की पोटली में बांध कर टांग दें | 1 सेंटीमीटर लम्बे अंकुर निकलने पर सातों की सिलबटे पर चटनी बनाये |जिस पानी में दाने भिगोय हे उसे सभालं कर रखे i, बाद में 200 लीटर पानी लेकर उसमे ऊपर बाला पानी एवं चटनी तथा 10 लीटर गोमूत्र डालकर लकड़ी से अच्छे से मिलाकर कपडे से छानकर 48 घन्टे के अन्दर छिड़काव करे|

छिड़काव कब करे ?

फसल के दाने दुग्धावस्था में हो , फल फलिया बाल्यावस्था में हो, फूलो में कली बनने के समय , सब्जिंयों में कटाई के 5 दिन पूर्व छिड़काव करे|

दानों , फल फलिया ,फूल, सब्जिंयों पर बहुत अच्छी चमक आती है| आकार , वजन और स्वाद भी बढता है |

 

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